एक दिन ऐसे ही जब भोलू की आँख खुली तो उसे लगा जैसे उसने कोई सपना देखा उसने कोई सपना देखा सपने में अपनी माँ को देखा माँ बोली जल्दी से उठ जा भोलू सूरज सर पर हैं नहा धो कर तैयार होकर पढ़ना भी तो है पढ़ना भी तो है फिर मित्रों संग खेलना भी है भोलू चौक कर माँ से बोला पढ़ेंगे कैसे हम विद्यालय तो बंद है और न कोई अध्यापक है और न कोई अध्यापक है तो उठ के क्या करू इस पर माँ हंस के बोली मेरा हाथ बंटाएगा धुले कपडे सुखाएगा तो गणित की गिनती सीखेगा गणित की गिनती सीखेगा और जल्दी बड़ा होजायेगा भोलू ने फिर अचरज में माँ से पुछा खेलूंगा कैसे मेरे मित्र तो अपने अपने घर पर है कोई नहीं बाहर कोई नहीं बाहर तो किसके संग खेलूंगा मैं इस पर फिर माँ हंस के बोली चल नए मित्र बनाये आसमान के साथ पतंग उड़ाए और नदी के संग तैरें और नदी के संग तैरें फिर थक के घर लौट आये भोलू की आँख खुली तो देखा माँ कपडे धो रही थी दौड़ के गया और उसने माँ को अपना सपना सुनाया माँ को अपना सपना सुनाया तो माँ हंस के बोली अब उठ ही गय...