So, as the topic was about FICTIONAL UNIVERSE, and we were asked to share our imaginary tales, I recited this poem in Hindi. You will have to go down a little to read the poem. कड़ाके की गर्मी में एक दिन मैं बिन बादल बरसात से टकराया था। ज़िन्दगी की इस भागगड़ में एक दिन मैं एक अजीब माणूस से टकराया था। वो बोले " अतरंगी हैं तू और तेरे ये तरीकें चल अभी यही बैठकर बंटवारा कर ले । मैं ठहरा भोला , मासूम और बिलकुल नादान तो पूछा उनसे " किस किस का बंटवारा करले ? वो हंस के बोले , रे मुर्ख - चल सब कुछ बाँट लेते हैं। जिस ज़मीन को मैं ने उपजाऊ बनाया वो मेरा जिस धरती को तूने खंडहर बनाया वो तेरा। जिस जल को मैं ने शीतल बनाया वो मेरा जिस पानी को तू ने नालायक बनाया वो तेरा। जिस वायु को मैं ने पावन बनाया वो मेरा जिस हवा को तू ने काला और बत्तर बनाया वो तेरा। जिस हरियाली को मैं ने हरा बनाया वो मेरा जिन पेड़ पौधों को तू ने राख बनाया ...